मंच तो अंसारी . मंसूरी. सलमानी आदि के रुपयो से बनाया सजाया गया । लेकिन मंच पर सय्यद फलानुद्दीन साहब . सय्यद ढेकानुद्दीन साहब . सय्यद सँभालुद्दीन साहब ने ही खिताब किया । जिसमें अपनी ही बिरादरी का सिजरा जबरदस्ती . . . तमाम वलियों से मिलाते हुए हजरत अली रजि ० तक मिला दिया । और अपने को अशरफ बताते हुए ऐसा लग रहा था कि मंच पर सभी अशरफ ( ऊँच ) बिराज मान हैं . और बाकी को वह अरजल ( नीच ) कहते ही रहते हैं । . . . . मैं सोच में पड़ गया कि 1400 वर्ष पहले मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने जिस घराने में काबा शरीफ की चाबी दिया था . आज भी वह चाबी उसी घराने में मौजूद है लेकिन ! आज तक उस घराने का कोई आदमी हमारे देश में नहीं रहता । उनके लिए वहीं जगह काफी है लेकिन ! नबी सल ० के घराने वाला क्या अरब मे कोई नहीं है जो हमारे देश के हर जिला में नबी सल o के घराने का दावा कर रहा है ? बहरहाल मंच पर न कुरआन की बात बताई गयी . न हदीस की बात बताई गयी . न हालात हाजिरा पर मुसलमानों के जख्मों का कोई इलाज बताया गया / लेकिन तमाम जमाअत के मुसलमानो की मजाक बनाई गयी और मंच के चारों तरफ बैठे अरज़लों से अपनी अशरफियत मनवाई गयी . . बाकी बहलूल दाना . व जुनेद बगदादी रह ० की कुछ बात के बाद खिताब बन्द होने वाला ही था कि ' । । . सय्यद जनाजुद्दीन के एक शागिर्द जुम्मन गंजेड़ी मंच की कुर्सी पर बैठ कर खिताब करते लगे । जो अब काफी सुधर गये थे . गाँजा से तोबा कर ली थी । बोले ! हमारा सिलसिला फलाँ बुजुर्ग से होता हुआ 700 वर्ष पहले फलाँ बुजुर्ग तक होते हुए . मूसा काजिम . व जैनुल आबेदीन रह ० तक होते हुए शेरे खुदा तक पहुंचता है इस लिए हमको अल्लाह ने सय्यदों में पैदा करके बड़ा एहसान किया है । इतनी बात पर मुझे समझते देर न लगी . मैं समझ गया कि हमारे प्यारे बुजुर्गान दीन . बिगड़े भटके लोगों को दीन इस्लाम सिखा कर उन्हें अपना मुरीद बना कर सुधारने की कोशिश करते थे और बताते थे कि फलाँ फलाँ बुजुर्ग बड़े नेक थे वह उनके मुरीद थे . वह उनके मुरीद थे / और एक पीरी मुरीदी सिजरह दे दिया करते थे जिसे जुम्मन गंजेड़ी जैसे लोगों ने सुधर जाने के बाद भी पीरी मुरीदी सिजरह को नसली सिजरह में कनवर्ट करके अशरफ . अरजल की चाशनी कुछ मुसलमानों को पिला दिया जो कुरआन न समझने की वजह से चाशनी पी रहे हैं । जबकि अरजल अशरफ की यह जहरीली चाशनी पूरे कुरआन में नहीं है । काश ! जिन लोगों ने मंच सजाया उनका कोई शख्स कुरआन लेकर खुद मंच की कुर्सी से कुरआन तरजुमा से सुनाता . नबी सल ० की मोअतिबर हदीस सुनाता तो अल्लाह भी राजी होता और अल्लाह के बन्दे भी असली चीज सुनते ।