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उप्र निकाय चुनाव और #पसमांदा मुसलमान

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""""""""""""""""""""""""""""""" उप्र में हो रहे निकाय चुनाव का परिणाम जितना ज्यादा भाजपा या अन्य दलों के लिए अहमियत रखता है, पहली बार उससे कहीं ज्यादा अब पसमांदा मुसलमानों के भविष्य की सियासत और सियासी हिस्सेदारी पाने के लिए भी महत्वपूर्ण बन गया है...? अगर इस चुनाव में पसमांदा मुसलमानों ने ढंग से, बगैर किसी के बहकावे में आए, अपनी सियासी सूझबूझ से फैसला ले लिया, तो उप्र निकाय चुनाव का परिणाम आने के बाद, खासकर उप्र में 2024 के लोकसभा और 2027 के विधानसभा चुनाव में, सभी दलों को अपनी सारी सियासी रणनीति, मुसलमान नहीं सिर्फ पसमांदा मुसलमानों के इर्द गिर्द ही बनाने पर मजबूर हो जाना पड़ेगा...? पसमांदा मुसलमानों, हकीकत में इस निकाय चुनाव के परिणामों से ना तो मौजूदा केंद्र सरकार और ना ही वर्तमान उप्र सरकार पर कोई खास फर्क पड़ेगा और ना ही कोई बड़ी सियासी उथल पथल होनी है...? लेकिन पसमांदा मुसलमानों के सियासी हिस्सेदारी मुद्दे, जिसपर पहली बार उप्र के सियासत में सभी दलों द्वारा इस निकाय चुनाव में कुछ ना कुछ प्रयोग जरूर किया गया है, बहुत बड़ा फर्क पड़ने वाला है...? खासकर भाजपा ने उप्र के 16% पसमांदा मुसलमान वोटों की अहमियत को समझते हुए, जिस तरह से उन्हें अपनी सरकार, पार्टी संगठन, एमएलसी, राज्यसभा और निकाय चुनाव में अलग से हिस्सेदारी देने की शुरुवात की है, उससे सभी तथाकथित फर्जी सेकुलर दलों में बढ़ी बेचैनी को साफ महसूस किया जा सकता है...!! ये भाजपा के पसमांदा प्रेम से उपजे खौफ का ही नतीजा है कि अब सपा, बसपा और कांग्रेस जैसी पार्टियां भी पहली बार, इस निकाय चुनाव में उम्मीदवारों के चयन में पसमांदा को नजरंदाज करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई और पहली बार एक मुनासिब तादात में इन सभी दलों ने पसमांदा को टिकट दिया भी है...!! ""पसमांदा मुसलमानों, उस जाति या वर्ग को सियासत में कभी भी उसकी आबादी के अनुपात में सियासी हक- हिस्सेदारी नहीं मिल पाती, जोकि किसी एक दल या पार्टी के #बंधुवा_गुलाम बनकर रह जाते हैं..."" इसलिए आप सहित, पसमांदा के सभी सामाजिक संगठनों से यही गुजारिश है कि अगर पसमांदा मुसलमानों को भविष्य की सियासी हक-हिस्सेदारी की दौड़ में, खुद को शामिल रखना है, तो इस निकाय चुनाव में आप लोग जिताऊ पसमांदा उम्मीदवार ही देखें, ना कि उसकी पार्टी..? क्योंकि देश की सियासत में कोई ऐसी पार्टी नहीं, जिसने पसमांदा मुसलमानों का शोषण करने में कोई कोर कसर बाकी रखी हो...? इसलिए खासकर भाजपा या बसपा का भी पसमांदा उम्मीदवार जहां कहीं भी लड़ाई में हो, वहां-2 बेझिझक वोट देकर, प्राथमिकता के आधार पर उसे कामयाब बनाइए... खासकर बसपा के दिए गए 11 में से 5 पसमांदा महापौर उम्मीदवार और भाजपा के 29 नगर पंचायत पसमांदा मुस्लिम उम्मीदवारों की जीत के लिए जी जान लगा देने में, कोई कोर कसर बाकी मत रखिए... विशेष नोट- जैसा कि सूचनाएं मिल रहीं हैं कि स्वार टांडा विधानसभा, जनपद रामपुर, उपचुनाव में अपना दल के मुस्लिम उम्मीदवार का, वहां के स्थानीय कुछ सियासी मुस्लिम मठाधीशों द्वारा, सिर्फ इसलिए खुलकर विरोध किया जा रहा है कि वो उम्मीदवार #पसमांदा मुसलमान है...!! आगे आप लोग खुद समझदार हैं कि ऐसी हालत में हमें क्या #फैसला लेना चाहिए...?