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मौलवी फ़िर्क़ों की इन्साइड स्टोरी

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★*********************************★ 6- बादशाहों ने इमाम तिरमिज़ी से मुसलमानों को अपनी नंगी-भूखी ज़िन्दगी में मगन रखवाया: ★*********************************★ बादशाह एकड़ों में बने ऊँचे-ऊँचे शाही महलों में रहते और शाही ज़िन्दगी जीते थे और बेचारे मुसलमान फटे हाल झौपड़ियों में रहते और रूखी-सूखी चीज़ें खाकर अपना गुज़ारा करते थे. ग़रीब मुसलमान अपनी ग़रीबी-फ़क़ीरी में मस्त रहे और बादशाहों वज़ीरों, जागीरदारों, फौजी अफ़सरों और ज़मींदारों की शाही ज़िन्दगी में कोई ख़लल नहीं डालें. अपनी ग़रीबी में भी टुन्न रहें, इसके लिए भी बादशाहों ने अपने ख़रीदे ग़ुलमटे इमामों का इस्तेमाल किया. इन इमामों से रसूल(स) के नाम की आड़ पकड़वा कर हदीसें बनवायीं और नंगे-भूखे मुसलमानों को जन्नत के नशे का ऐसा हदीसी इंजेक्शन लगवाया कि उन्हें उनकी ग़रीबी में भी मस्त कर दिया. नंगे-भूखे को भी अपनी ग़रीबी में ऐंठवा दिया. इमाम तिरमिज़ी का वह हदीसी इंजेक्शन यह था........ ★★ हज़रत अबुहुरैरा ने बताया कि रसूल(स) ने फ़रमाया, “फुक़रा(नंगे-भूखे) लोग, ग़नी(मालदारों) से 500 बरस पहले जन्नत में दाख़िल होंगे कि वह क़ियामत का आधा दिन है.”*(अबवाबुल ज़ोहद बाब मा जाआ इन्ना फ़ुक़रा *तिरमिज़ी जिल्द दोम पेजः39) ***************"******************* इस हदीस के उलट, अल्लाहतआला दुनिया में अपनी किताब-क़ुरआन से मुँह मोड़ने वालों को “भूख और ख़ौफ़ में जीने को अज़ाब की निशानी” बताता है. लीजिए, यह भी पढ़िये. ************************************** ★★ और जिसने मेरी नसीहत (क़ुरआन) से मुँह मोड़ा तो बेशक़ उसकी माली हालत तंग कर दी जायेगी और हम उसे क़ियामत के दिन अन्धा उठायेंगे. (त्वाहा20:124) ★★ और उन पर “मोहताजी” मुसल्लत कर दी गई, यह इसलिये कि वह अल्लाह की आयतों को छिपाते थे. (आलेइमरान 3:112) ★★ अल्लाह “ग़नी होने” को इनाम बताता है. “अगर वह फ़क़ीर होंगे तो अल्लाह, अपने फ़ज़ल से, उन्हें "ग़नी कर देगा.” (अलनूर 24:32) ************************************** बहरहाल, बादशाहों ने अपने ख़रीदे इमामों से नंगे-भूखे मुसलमानों को सदियों पहले हदीसी इंजेक्शन लगवा दिया और उनको मालदारों से 500 बरस पहले जन्नत में जाने के नशे में टुन्न कर दिया और ऐसा टुन्न कर दिया कि सदियाँ बीतने पर भी आज तक मुसलमानों पर से यह “मुल्ला-नशा” नहीं उतरा है. ★★ जो मोहताजी और ख़ौफ़, अज़ाब की निशानी है, मुसलमान उसी को अपने लिए बेहतर समझ रहे हैं. मुसलमान आज भी मोहताजी के नशे में मस्त हैं, मुसलमान ऐंठे हुये हैं और मेहनती-मालदार मुसलमान, जो अपनी मेहनत की कमाई में से ग़रीबों को दे रहे हैं, यह नशे में मस्त फटेहाल मुसलमान उन्हें भी बेवक़ूफ़ समझ रहे हैं कि हाय! यह अपना मेहनत का माल भी हम पर ख़र्च कर रहे हैं और हमसे 500 साल बाद जन्नत में भी जायेंगे. 7- बादशाहों ने इमामों से मुसलमानों को जातियों और फ़िर्क़ों में बँटवाया: ★*********************************★ ★★ मुसलमानों में जातियों और बिरादरियों पर बेहद तहक़ीक़ी रिसर्च बुक, जनाब मसऊद आलम फ़लाही साहब ने “हिन्दुस्तान में ज़ात-पात और मुसलमान” लिखी है, जिसमें उन्होंने बताया है कि मुसलमान इमामों ने किस तरह मुस्लिम समाज को जातियों और बिरादरियों की तफ़रीक़ को मज़हबन जायज़ ठहराया है. इस बुक में भरपूर एविडेन्स और डिटेल से बहस की गई है इसलिये हम इस रिसर्च बुक को अपने टॉपिक से एड करते है और उसे पढ़ने की सिफ़ारिश करते हैं, इसलिये हम यहाँ पर मुसलमानों में ज़ात-पात की तफ़रीक़ को छोड़कर सिर्फ़ फ़िर्क़ों की हद तक अपनी रिसर्च को महदूद किये हुये हैं. बादशाहों को अपनी हुकूमत के लिये मज़हबी लोगों की ज़रूरत होती हैः ★*********************************★ यहूदी बादशाहों ने रब्बियों, ईसाई बादशाहों ने पादरियों, पारसी बादशाहों ने दस्तुरों और हिन्दू बादशाहों ने पण्डितों से यह काम लिये. इन मज़हबी माफ़िया मुल्लों का बस यही काम था कि वे पब्लिक में ज़्यादा से ज़्यादा फ़िर्क़े बनायें, फिर वे फ़िर्क़े एक दूसरे के ख़िलाफ़ कुफ़्र-मुरतद के फ़त्वे दें और उनमें जितनी ज़्यादा नफ़रत हो सके, वह पैदा करें. ★★ सारी पब्लिक आपस में फ़िर्क़ों के झगड़ों में ही उलझी रहे. सारे फ़िर्क़े बादशाहों को ही अपना माई-बाप मानते रहें. सब बादशाहों के पास एक-दूसरे की शिकायतें करने के लिए जाते रहें. बादशाहों के ज़ुल्म और exploitation की तरफ़ कोई तवज्जो ही नहीं दे. कोई बादशाहों के ख़िलाफ़ बग़ावत की बात सोचे भी नहीं और अगर कोई बग़ावत की ज़रा सी भी तैयारी करे तो दूसरे दुश्मन फ़िर्क़े वाले की जासूसी के डर से वह भी नहीं कर पाये. क्योंकि बादशाह के ख़िलाफ़ बग़ावत यूँ ही नहीं हो सकती थी. कई साल पहले से तैयारी की ज़रूरत होती थी. बग़ावत के लिए बड़े पैमाने पर बाग़ी लोगों व हथियारों का इकट्ठा करना भी होता था. इतनी बड़ी तैयारी दूसरे फ़िर्क़ों से छिपी नहीं रह सकती थी. दूसरे फ़िर्क़े, उस फ़िर्क़े की दुश्मनी में उसकी ख़बर बादशाह को दे देता था और बादशाह की नज़र में अपने फ़िर्क़े को अच्छा कर लेता था. इसलिये मज़हबी इमामों का पूरा फ़ोकस इस बात पर होता था कि मुसलमानों में ज़्यादा से ज़्यादा फ़िर्क़े बनाये जायें ताकि मुसलमानों को एक प्लेटफार्म पर इकट्ठा न होने दिया जाये. ★★ मुसलमानों में इत्तेहाद, होने का मतलब था कि ज़ालिम बादशाह की उल्टी गिनती शुरू होना. पब्लिक में इत्तिहाद होने पर पब्लिक ज़रूर पूछती कि आप हमारे टैक्स के पैसे से अय्याशियाँ क्यों कर रहे हो? टैक्स की रक़म मुल्क के डेवलपमेंट और इंसानों की भलाईयों पर न ख़र्च करके टैक्स अपनी ज़ात पर ख़र्च क्यों कर रहे हो? ★★ Divide and Rule policy हर धर्म के बादशाहों की ऑक्सीजन होती है. हर धर्म का बादशाह इसी पॉलिसी पर चलता हैं. ★★ बादशाह हर फ़िर्क़ें को protect भी करता था. हर फ़िर्क़े के इमामों को दौलत और जागीरें देता था. कभी किसी फ़िर्क़े की बात मान लेता तो कभी किसी फ़िर्क़े की मान लेता. सारे फ़िर्क़ों को ज़िन्दा रखता. ★★ कुछ लोग यह समझते हैं कि Divide and Rule Policy अंग्रेज़ किंग की थी तो यह आधा सच है. मुकम्मल सच यह है कि हर देश और हर धर्म का बादशाह इसी Divide and Rule policy से काम करता था. अंग्रेज़ बादशाहों ने भी इसी पॉलिसी से काम लिया था और आज भी हर देश इसी पाॅलिसी पर काम करते हैं. बादशाहों की Divide and Rule Policy को “मिल मालिक की मिसाल" से समझें: ************************************* मिल या फ़ैक्ट्री मालिक अपने कर्मचारियों में बहुत से ग्रुप्स बनाता है. वह हर कर्मचारी को बताता है कि वह बस उस पर ही भरोसा करता है. इसलिये दूसरे कर्मचारियों की हरक़तों की ख़बर उसे देते रहो. मिल मालिक अपने हर कर्मचारी को दूसरे के ख़िलाफ़ खड़ा कर देता है. इस माहौल में मिल के कर्मचारी, मिल मालिक से नहीं, दूसरे कर्मचारी की जासूसी से डरते हैं कि कहीं यह उसकी चोरी या करप्शन की रिपोर्टिंग मालिक से न कर दे. मिल मालिक जानता है कि उसके कर्मचारियों में इत्तिहाद होगा तो यह उस वक़्त हड़ताल करेंगे, सैलरी बढ़ाने का दबाव बनायेंगे, जब मिल के प्रोडक्शन की डिमांड ज़्यादा होगी. मिल मालिक को ब्लैकमेल करेंगे. घोटाले कर देंगे, इसलिये मिल मालिक अपने मिल में बहुत से ग्रुप्स पालता है. सब को शेल्टर देता है और ख़ुद चैन की नींद सोता है. ठीक यही Divide and Rule policy दूसरे धर्मो के बादशाहों की तरह मुसलमान बादशाहों ने भी मुसलमानों में इस्तेमाल की. .....................जारी......