यह सर्वविदित तथ्य है कि मौलाना कांग्रेस के धुर विरोधी और मुस्लिम लीग के प्रबल समर्थक थे। मौलाना थानवी ने कांग्रेस में मुसलमानों के सम्मिलित होने को नाजायज़ (इस्लामी-विधि के विरुद्ध) और उस के लिए काम करने को अहल-ए-इस्लाम (इस्लाम के मानने वालों) के लिए हानिकारक बताया। (पेज न० 86, मौलाना अशरफ़ अली थानवी और तहरीक-ए-आज़ादी) एक सभा में कहते हैं कि… मुसलमानों विशेष रूप से उलेमा (मौलानाओं) का काँग्रेस में शामिल होना न सिर्फ़ धार्मिक रूप से जानलेवा है बल्कि कांग्रेस से बेज़ारी (नफ़रत) का ऐलान कर देना बहुत ज़रूरी है। (पेज न० 88, मौलाना अशरफ़ अली थानवी और तहरीक-ए-आज़ादी) एक अन्य सभा में कहतें हैं कि… “कांग्रेस में ऐसे लोग जिन को अवाम (जनता) उलेमा कहती है, दो तरह के हैं। एक तो वह हैं जो भाषण और लेख लिखने के कारण समाज के विशेष दर्ज़े में मशहूर हैं मगर शरीयत (इस्लामी विधि) के आलिम (इस्लाम का ज्ञानी) नही हैं। चूंकि यह लोग आलिम (मौलवी) नहीं हैं इस लिए इन से मसायल (धार्मिक समस्याएं) आदि के बारे में ज़्यादा शिकायत भी नहीं की जा सकती। दूसरे तरह के वह लोग हैं जो वाक़ई में पढ़े-लिखे और विधिवत मौलवी हैं मगर कांग्रेस पर न्योछावर हो कर इस्लामी-विधि की सीमा से आगे बढ़ गए हैं। अंग्रेज़ों से दुश्मनी के कारण कांग्रेस के साथ हिम्मत और शान से दोस्ती करते हैं और सीमाओं और प्रतिबन्धों का भी ध्यान नहीं रखते हालांकि हदीस शरीफ़ में है, “मुहब्बत और दोस्ती दोनों में बराबरी होनी चाहिए।” सम्भव है हालात पलटा खाएं, दोस्त दुश्मन बन जाएं और दुश्मन दोस्त हो जाये। यह दूसरे तरह के लोग साफ़-साफ़ कहते हैं कि अगर अंग्रेज़ भारत से निकल जाएँगे तो सारी दुनिया को सुकून नसीब होगा, इस लिए हम को इस की जी-तोड़ कोशिश करना चाहिए, चाहे भारत और भारतीय मुसलमानों का ईमान (इस्लामी आस्था) बर्बाद ही हो जाये। इसी सिलसिले में फ़रमाया कुछ अहल-ए-इल्म (ज्ञानी) कहतें हैं कि हम इसलिए कांग्रेस का साथ देते हैं कि काँग्रेस पर मुसलमानों का क़ब्ज़ा (आधिपत्य) हो जाये, अगर सच में यही उद्देश्य है तो यह मुस्लिम लीग में ज़्यादा आसानी से हो जाएगा, क्योंकि मुस्लिम लीग वाले आज्ञाकारी होने के लिए तैयार हैं।चुनांचे लीग के बड़े-बड़े सदस्यों ने मुझे लिखा है कि हम उलेमा हज़रात (सम्मानित इस्लामी विद्ववानों) के आज्ञाकारी होने के लिए तैयार हैं। और कांग्रेसी तो ख़ुद अपना आज्ञाकारी बनाने की कोशिश करते हैं, उन पर आधिपत्य जमाना कठिन है। अब तो यही सूरत है कि लीग में सम्मिलित होकर इस को अपने आधिपत्य में लाएं और नाकारा लोगों को निकाल बाहर करें।