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अंग्रेजों और बाकी विजेताओं के बीच जो बुनियादी अंतर रहा है । वह अंतर है #वैज्ञानिक_जिज्ञासा

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जब मुसलमानों ने हिंदुस्तान को फतह किया था, तो वे हिंदुस्तान के इतिहास का व्यवस्थित अध्ययन के लिए पुरातत्वविदों को, हिंदुस्तानी संस्कृति का अध्ययन करने के लिए मानव शास्त्रियों को, हिंदुस्तानी मिट्टी का अध्ययन करने के लिए भूगर्भशास्त्रियों को, या हिंदुस्तानी जीव जगत का अध्ययन करने के लिए जीव विज्ञानियों को अपने साथ लेकर नहीं आए थे । जब अंग्रेजों ने हिंदुस्तान को जीता तो उन्होंने यह सारे काम किए । 10 अप्रैल 1802 को हिंदुस्तान के महान सर्वेक्षण (द ग्रेट सर्वे आफ इंडिया) का आगाज़ हुआ था । यह 60 सालों तक चला । दसियों हजारों स्थानीय मजदूरों, अध्येताओं और गाइडों की मदद से अंग्रेजों ने सावधानीपूर्वक हिंदुस्तान का नक्शा तैयार किया, सरहदें खींची, दूरियां नापी, यहां तक कि पहली बार एवरेस्ट और हिमालय की दूसरी चोटियों की ठीक-ठीक ऊंचाई का हिसाब लगाया । अंग्रेजों ने हिंदुस्तानी प्रांत के सैन्य संसाधनों और उनकी सोने की खदानों के स्थलों की छानबीन तो की ही, लेकिन उन्होंने हिंदुस्तान की मकड़ियों की दुर्लभ जातियों की जानकारी भी इखट्टा करने, रंग बिरंगी तितलियों का कैटलॉग तैयार करने, विलुप्त हिंदुस्तानी भाषाओं के प्राचीन स्वरूप का पता लगाने और विस्मृत खंडहरों को खोदने का कठिन परिश्रम भी किया । मोहनजोदड़ो उस सिंधु घाटी का एक प्रमुख नगर था, जो 3000 ईसा पूर्व में फली-फूली थी और ईसा पूर्व 1900 के आसपास नष्ट हुई थी । अंग्रेजों के पहले के हिंदुस्तान के किसी शासक ने- मौर्यो, गुप्तों, दिल्ली के सुल्तानों और महान मुगलों ने भी- इन खण्डहरों की और दुबारा नजरें उठाकर नहीं देखा था, लेकिन एक ब्रिटिश पुरातात्विक सर्वेक्षण ने 1922 में इस स्थल की ओर ध्यान दिया तब एक अंग्रेज दल ने इसकी खुदाई की और हिंदुस्तान की पहली महान सभ्यता का पता लगाया जिसके बारे में किसी हिंदुस्तानी को जानकारी नहीं थी -लेनिन मौदूदी