परवेज़ हनीफ़,,सोशल एक्टिविस्ट,सरपरस्त आल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महान ग़ैर सियासी सामाजिक पहल अगर धर्म के नाम पर देश के बटवारा जिसमें देश मे 800 साल हुकूमत करने वालो का जुनून सत्ता सरकार था और विदेशी मूल के ही मुस्लिम आगे आगे रहे,उनकी जगह आज़ादी बटवारे के बाद भारतीय मूल के दो राष्ट्र विरोधी पसमांदा कुल मुस्लिम के 85% देशभक्तों को अगर राजनीतिक भागीदारी ,341 में दलित समान जातियो को आरक्षण व देश के नव निर्माण के इन हस्तशिल्पी तकनीकी पेशेवर मज़दूर चितेरों को महत्व दिया जाता तो आज जिस हिन्दू मुस्लिम भेदभाव की समस्याओं से देश जूझ रहा है,शायद आज देश विकसित राष्ट्र होता। अमृत वर्ष 75 साल की आज़ादी का अगर विश्लेषण किया जाए तो सबसे पहले कांग्रेस सपा व बसपा ने मुसलीम इन्ही हार्ड कोरर को लेकर चली राज्यसभा लोकसभा एमएलए एमएलसी बाटे,मसलक मर्कज़ो इमामो फतवो से पसमांदा वोट बैंक को 75 सालो से साधा,हिन्दू बीजेपी विरोधी छवि को राजनीतिक हथियार बनाया ,विकास सामाजिकन्याय से दूर रख्खा,सपा बसपा जो दलित पिछड़े के नाम पर कांग्रेस की जगह ली उसमे भी इन संविधान के धारा 340 तक मे यादव जाटव ने जायज़ भागीदारी न दे परम्परागत रूप से अल्पसंख्यक कांग्रेस की पालिसी बरकरार रख्खी। बीजेपी भी कुछ इसी अंदाज में सत्ता में दिलो की दूरियां,और मुस्लिम में प्रतीकात्मक उस वर्ग यानी शिया विदेशी मूल मुस्लिम को राज्य राष्ट्रीय स्तर पर भागीदारी दी,जिनकी 1 % से भी कम भागीदारी है,विदेशी मूल के सभी मसलक ने भी बीजेपी घुसपैठ सत्ता की हनक के लिए दोहरी मानसिकता के साथ बड़ाई, मसलकी मरकज़ी नेता भी फोटो सेशन में दिखे पर बीजेपी विरोध 85व%मुस्लिम को भड़काऊ राजनीति के लिए साधते रहे क्यो इस वर्ग को नीच असभ्य असंस्कृत ज़लील अर्ज़ाल अज़लाल कह कर उसे रूस की ज़ारशाही की तरह जन्नत दोज़ख़ मार्गदर्शक के रूप में खुद को आज़ादी बाद और सियासी रूप में खुद को मज़बूत किया। किसी हिंदुस्तानी मुस्लिम धार्मिक मसलक मसलको पर्सनल लॉ बोर्ड, फिरको ने पैग़म्बर मोहम्मद साहिब के आखिरी खुतबा जिससे प्रभावित होने के बाद केरल गुजरात में सबसे पहले हिन्दू राजाओं ने इस्लाम को भारत मे परिचित कराया और यह भारत मे समाजवादी समतामूलक समाज की पहल थी,और भारत के संविधान के संकल्प परिभाषा की छाप थी हिंदुस्तानी मुसलमानो को नही बताया केवल मुग़लो का गुड़गान कराया,एक ईश्वर वाद जिसकी नींव इस्लाम मे पड़ी,और बहूईश्वर वाद जो मक्का अरब में प्रचलित था जिसके टकराव पर पैग़म्बर मोहम्मद स0अ0 ने कुरान में दर्ज इस्लाम के इतिहास में "सुलह हुदैबिया" नामक सन्धि दोनो मतावलम्बियों के बीच की ,आज हिंदुस्तान भी इन्ही दो विचार धारा मतों पर कायम है 80% से लगभग 16% की बाकी अल्पसंख्यको में सबसे बड़ी हिस्सेदारी मुस्लिम धर्मावलम्बियों की है ,जिसमे खुद बहुत से मत फिरके है मस्जिद, क़ब्रिस्तान,आपस मे रोटी बेटी सम्बन्ध विदेशी मूल में तो है पर भातीय मूल के पसमन्दा कहि भी नही प्रचलित होने दिया कि सामाजिक समरसता एकता का सूत्र न बने ,यह धार्मिक रूप एकदूसरे में मसलको मर्कज़ो में मनसबदारी की तरह बाट दिए गए ,और खुद के साहित्य में एक ही कॉमन मिनिमम प्रोग्राम मतभेद दिखाने के बावजूद रहा के भारतीय मूल के जुलाहे धुने वग़ैरह दलित सभी नीच है इन्हें इल्म न दीया जाये केवल साक्षर या अरबी में कुरान तक सीमित रख्खा जाए,असबाब बघावते हिन्द में अंग्रेज परस्त सर सैय्यद आहमद खान ने तो इन पसमन्दा मुस्लिम महिला शिक्षा तक को मना किया विदेशी मूल को आधुनिक शिक्षा का मुस्तहक़ बताया, यह तथाकथित अधिकांश मुस्लिम नेता सम्बन्ध ही नही,वोट भी भारतीय मूल के पसमांदा को नही देते,जिसकी हनक इतनी थी के लोकतंत्र में 85% होने के बावजूद सेक्युलर नाम की पार्टियां टिकट ही नही देती थी,नफरतो की वजह थी के यह पसमांदा वर्ग पाकिस्तान न जाकर भारत मे ही हिन्दू के साथ परम्परागत पेशेवर रोज़गार की वजह से पाकिस्तान नही गया ज़हनी नफरत है के पाकिस्तान छोटा रह गया वरना दिल्ली पंजाब होता यह बात मुझे अपने जनता दल से विधान सभा चुनाव 1991 में मुझे वोट न देने के मुख्य वजह बताई गई जब के सारा अशराफी वीपी सिंह का दीवाना था इस तरह की बहुत सी मिसाले है के पसमांदा को जगह जगह ऐसे अवरोधों रोक से योग्य होने के बावजूद कुप्रथा से जूझना पड़ा ज़बा के मैं इके सोशल डेवलपमेंट एक्टिविस्ट रहा और मुस्लिम में समरसता के प्रति अपने योगदान के प्रति आशावान था जो स्वम् में एक सामाजिक न्याय पर शोध का विषय है। इन हालात में विदेशी मूल और मुग़लो के दौर में मनसबदारी हुकूमत ज़मीदारी के लिए सवर्ण हिन्दू से मुस्लिम अशराफो में सीधे दाखिल 15% मुश्किल से भागीदारी पर यह वर्चस्व 85% लोकतंत्र में है। ग़ौर तलब है न तो इन धर्म संस्थाओ व राजनीति में काबिज तथाकथित धर्म और राजनीति के ठेकेदारों ने न तो देश के संविधान समाजवादी व व्यवस्था के प्रतीक पैग़म्बर साहेब के आखिरी खुतबे पर तर्क या बात करते नज़र आते है और न ही सुलह हुदैबिया की बात करते है किसी ने सुना हो बताये क्योके इससे वोह सभी समस्याएं खत्म हो जाएगी जो 800 साल के विदेशी आक्रांताओं और 75 साल के लोकतंत्र में भारतीय मुस्लिमो को अपनी रणनीति से दलितों से भी जानबूझ कर साजिशन कांग्रेस से मिल कर पीछे धकेल दिया। देश मे अब जागरूकता बाद रही है सुच मक्कारी धर्म के नाम पर उजागर हो चुकी है यह तो वोह लोग है जो सत्ता के लिए दीने इलाही राष्ट्र धर्म बना सकते है,पर देश में पैग़म्बर मोहम्मद साहब की सामाजिक समरसता क्रांति पर धर्मान्तरित मुस्लिम को दीं की सही पैग़म्बर के आखिरी खुतबे को भी छुपाते है क़ौम ज़ात बिरादरी ऊंच नीच खुद को अशराफ व हिंदुस्तानी पसमन्दा मुस्लिम को अज़लाल अर्ज़ाल मेंबात दिया जिसे 1901 की जनगड़ना में अंग्रेज़ो ने खुद भारतीय मुसिम को वर्गों व ऊंच नीच बताये जिस पर गोल मेज़ सम्मेलन तक 1930 ,1931 में आज़ादी देने से पहले सामाजिक न्याय ड्राफ्ट के लिए आयो जीत किया पर विदेशी मूल के काबिल नेतृत्व जिसमे अफगानी खान अब्दुल गफ्फार खान तक ने अन्याय किया,सरदार पटेल द्वारा अल्पसंख्यक विकास आरक्षण के मुद्दे पर 7 सदस्यीय भारतीय कमेटी में इन विदेशी मूल के कांग्रेसी सभी 5 नेताओं ने आरक्षण दलित पिछड़े मुस्लिम का विरोध किया। ईमानदारी से देखा जाए तो अब भारतीय मूल के मुस्लिम की विकास में बराबरी के लिए सरकार को उल्टी तरफ से किताब खोलनी होगी,तभी साम्प्रदायिकता का यह छदम खेल कम होगा,असली जेहाद तो हिंदुस्तान में यही होगा के भारतीय मूल को सामाजिक न्याय बराबरी मील वरना यह विदेशी मूल तो बराबरी की जगह मुग़ल छाप बाबरी का अभ्यस्त हो चुका है। हम सहमत है के अदालत धार्मिक विद्वेष,टीवी ग़लत दिशा में जा रही धार्मिक प्रायोजित डिबेट से भारत का विश्व धार्मिक पर्यटन का सम्मान परवान चढ़ रहा है जो पूरी दुनिया भारत की एक मात्र विशेषता है,कहि ईसाई मुस्लिम,कही यहूदी मुस्लिम हम तो जितने धर्म सम्प्रदाय के जन्म व अवसर दाता है यही विश्व बन्धुत्व व वसुधैव कुटुम्बकम और सबका साथ सबका विकास है। आज बीजेपी के प्रेरणा के स्रोत योग्य थिंक टैंक आरएसएस प्रमुख ने भीएक नया विज़न दिया है जिस पर बहुसंख्यक हिन्दू समुदाय को दिल से स्वीकार करना चाहिए अगर वोह देश भक्त है,हर सत्ता की सियासी पारी में गर्म और नरम विचारधारा के लोग होते है पर गर्म विचारधारा वाले आरएसएस का अनुसरण करें । हर दौर हर नशे का वक़्त होता है दुनिया कहा है कौन सी चुनाटिया है जिन का मिल कर मुकाबला करना है देश ने धर्म सम्प्रदाय वाद आपसी झगड़ो का फायदा आक्रांताओं अंग्रेज़ो ने उठाया पर बातो और राज करो कि प्रक्रिया पर लगाम ज़रूरी है दुनिया मे सम्मान विकास तकनीक व समानता के लिए हमे ग़रीबी और आम आदमी की बुनियादी जरूरतों के लिए संघर्ष करना है मन्दिर मस्जिद बहुत कुछ हो सकता है पर सब कुछ नही