आखिर क्या बात है.. इस पसमांदा शब्द में जो आप को कौम का #गद्दार तक बना देती है""
आम बातचीत में अगर आप किसी को बताएं कि आप #जुलाहा या #रंगरेज़ हैं या पठान या #सय्यद हैं, तो इस बातचीत को रोजमर्रा की बातों में ही #शुमार किया जाता है... वहीँ दूसरी तरफ जैसे ही आप खुद को #पसमांदा (पिछड़ा-दलित) या सामने वाले को #अशराफ (सवर्ण) कह कर मुखातिब होते हैं, आप पर एक #इल्ज़ाम लगा दिया जाता है कि आप मुस्लिम एकता के #खिलाफ खड़े हैं... अब यह बात समझ में नहीं आती कि बिरादरी का नाम बताने तक आप अच्छे मुसलमान रहते हैं और खुद को पसमांदा कहते ही #कौम के #गद्दार बन जाते है....
यानि कि जो भी #दिक्कत है वह #जाति के होने या ना होने से नहीं है, वरना जाति बताते ही आप को एक लम्बा लेक्चर मिलना चाहिए था... क्या कभी किसी ने आप का #सरनेम देख कर आप से कहा की आप मुस्लिम एकता को #तोड़ रहे हैं..? नहीं ना..? तो बात यहाँ जाति की नहीं, किसी और चीज़ की है..?
""आखिर क्या बात है.. इस पसमांदा शब्द में जो आप को कौम का #गद्दार तक बना देती है""...?
पसमांदा शब्द के लग्वी माने जो भी हो, इस शब्द का एक #पोलिटिकल मीनिंग है. पसमांदा शब्द हमसे यह कहता है कि ‘"सभी पिछड़ी जातियों एक हो जाओ और अपने मनुवादी #शोषक के खिलाफ #मोर्चा ले लो...!!"’ पसमांदा #शब्द अपने आप में एक #क्रांति है... जबकि किसी जाति का नाम एक #गुलामी का #प्रतीक है और गुलाम सभी #शोषकों को पसंद हैं...!!
पसमांदा शब्द उस आज़ादी का #प्रतीक है जो जाति की #बेड़ियों से मुक्त होने पर मिलती है.. और हर #बेड़ी तोड़ने वाला शोषक की नज़र में #गद्दार ही होता है... किसी ने ठीक ही कहा है कि जैसे ही किसी पीड़ित (Victim) को पता चल जाता है कि वह किसी शोषण का शिकार हो रहा है, तो वह सिर्फ #victim नहीं रह जाता, बल्कि अपने शोषक का दुश्मन बन जाता है.... पसमांदा भी #दुश्मन है उनका, जो गुलामी को #जारी रखना चाहते हैं...?